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आखिर क्यों मस्जिद के सामने थम जाती है रथ यात्रा? जानिए रहस्य!

On: Saturday, June 28, 2025 2:12 PM
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पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रेम, एकता और सच्ची भक्ति का एक जीवंत प्रतीक है। यह वार्षिक उत्सव, जो लाखों श्रद्धालुओं को एकजुट करता है, अपने आप में एक अनोखी कहानी समेटे हुए है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विशाल रथ जब सड़कों पर निकलते हैं, तो एक विशेष स्थान पर, एक मुस्लिम भक्त सालबेग की मजार के सामने, ये रथ कुछ पल के लिए ठहर जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे छिपी है एक ऐसी कहानी, जो दिल को छू लेती है। 

सालबेग: एक मुस्लिम भक्त की अनन्य भक्ति

सालबेग, एक मुगल सूबेदार के पुत्र, 17वीं सदी में पुरी आए थे। वहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की महिमा सुनी और उनके प्रति गहरी श्रद्धा जागृत हुई। लेकिन, उस समय के सामाजिक नियमों के कारण, एक मुस्लिम होने के नाते उन्हें जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। फिर भी, सालबेग की भक्ति डगमगाई नहीं। उन्होंने भगवान जगन्नाथ के लिए भजन और कीर्तन रचे, जो आज भी भक्तों के बीच गूंजते हैं। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वह हर पल भगवान के दर्शन और उनके निकट रहने की इच्छा रखते थे। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा विश्वास किसी भी बाधा को पार कर सकता है।

रथ का रुकना: एक चमत्कार की शुरुआत

कहा जाता है कि एक बार सालबेग गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उनकी एकमात्र इच्छा थी कि वे जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 में शामिल हो सकें और भगवान के दर्शन कर सकें। लेकिन उनकी कमजोर हालत ने उन्हें मंदिर तक पहुंचने से रोक दिया। फिर भी, उनकी भक्ति की पुकार भगवान तक पहुंची। उस साल, जब रथ यात्रा शुरू हुई, भगवान जगन्नाथ का रथ सालबेग की कुटिया के सामने अचानक रुक गया। लाख कोशिशों के बावजूद रथ एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा। यह देखकर राजा, पुजारी और श्रद्धालु हैरान रह गए।

भगवान का संदेश: केवल भक्ति मायने रखती है

उसी रात, मंदिर के मुख्य पुजारी को एक स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने दर्शन दिए और बताया कि वे अपने प्रिय भक्त सालबेग का इंतजार कर रहे हैं। सात दिनों तक रथ उसी स्थान पर रुका रहा, और सभी धार्मिक अनुष्ठान रथ पर ही संपन्न किए गए। जब सालबेग स्वस्थ होकर भगवान के दर्शन करने पहुंचे, तभी रथ आगे बढ़ा। यह घटना इस बात का जीवंत प्रमाण है कि भगवान के लिए न जाति मायने रखती है, न धर्म, न पंथ—केवल सच्ची भक्ति ही उनके हृदय तक पहुंचती है।

आज भी जीवित है यह परंपरा

सालबेग की इस अनन्य भक्ति को सम्मान देने के लिए, हर साल पुरी रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ उनकी मजार के सामने कुछ देर के लिए रुकते हैं। यह ठहराव केवल सालबेग को श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि यह संदेश भी देता है कि भगवान की कृपा सभी के लिए समान है। यह परंपरा हमें एकता, प्रेम और भक्ति का संदेश देती है, जो आज के समय में और भी प्रासंगिक है। यह दर्शाता है कि सच्चा विश्वास और प्रेम हर दीवार को तोड़ सकता है।

एक प्रेरणा: भक्ति की कोई सीमा नहीं

जगन्नाथ रथ यात्रा और सालबेग की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति का कोई धर्म, कोई सीमा नहीं होती। यह कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में प्रेम, विश्वास और एकता को अपनाएं। पुरी की रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है, जो हमें मानवता और भक्ति के गहरे अर्थ को समझने का मौका देता है। इस यात्रा में शामिल होकर हम सभी इस अनूठी परंपरा का हिस्सा बन सकते हैं और सालबेग जैसे भक्तों की भक्ति से प्रेरणा ले सकते हैं।

अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य ज्ञान और लोककथाओं पर आधारित है। यह केवल पाठकों को प्रेरित करने और जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस कहानी को अपने विवेक से समझें और इसे अंतिम सत्य न मानें।

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