महाराष्ट्र के परभणी जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो हर संवेदनशील इंसान का दिल दहला दे। एक 19 साल की युवती ने चलती स्लीपर बस में एक बच्चे को जन्म दिया और फिर उस मासूम को कपड़े में लपेटकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस हृदयविदारक घटना ने न केवल इंसानियत को शर्मसार किया, बल्कि समाज के सामने कई गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं। आखिर क्या मजबूरी या क्रूरता थी, जिसने एक मां को अपने नवजात की जान लेने के लिए प्रेरित किया?
दर्दनाक घटना का खुलासा
यह दिल दहलाने वाली घटना मंगलवार की सुबह पाथरी-सेलु मार्ग पर उस समय घटी, जब एक स्लीपर बस पुणे से परभणी की ओर जा रही थी। बस में सवार युवती, रितिका ढेरे, अपने साथी अल्ताफ शेख के साथ यात्रा कर रही थी। रास्ते में रितिका को प्रसव पीड़ा शुरू हुई और उसने एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह किसी के लिए भी विश्वास करना मुश्किल है। दोनों ने नवजात को कपड़े में लपेटा और उसे चलती बस की खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवजात की मौके पर ही मौत हो गई।
ड्राइवर का शक और सच्चाई का पर्दाफाश
बस के ड्राइवर को खिड़की से कुछ फेंके जाने का शक हुआ। उसने तुरंत सवाल उठाया, लेकिन अल्ताफ ने गुमराह करते हुए कहा कि उसकी पत्नी को उल्टी हुई थी। ड्राइवर का शक यहीं खत्म नहीं हुआ, लेकिन सच्चाई तब सामने आई जब एक राहगीर ने सड़क किनारे कपड़े में लिपटे नवजात को देखा। उसने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद पुलिस ने बस को रोका और जांच शुरू की। पूछताछ में रितिका और अल्ताफ ने अपना अपराध कबूल कर लिया।
हिरासत और कानूनी कार्रवाई
पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और पाथरी पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। रितिका को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जबकि जांच अभी भी जारी है। पुलिस इस बात की तह तक जाने की कोशिश कर रही है कि यह अमानवीय कदम अचानक लिया गया फैसला था या पहले से नियोजित साजिश।
पति-पत्नी के दावे पर सवाल
रितिका और अल्ताफ ने खुद को पति-पत्नी बताया, लेकिन उनके पास इस दावे को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं थे। दोनों पिछले डेढ़ साल से पुणे में रह रहे थे और परभणी के मूल निवासी हैं। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या सामाजिक दबाव या आर्थिक तंगी ने उन्हें इस घिनौने कदम की ओर धकेला।
समाज के सामने गंभीर सवाल
यह घटना केवल एक अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज की उन कमजोरियों को उजागर करती है, जो लोगों को इतने क्रूर फैसले लेने के लिए मजबूर करती हैं। क्या हमारी सामाजिक व्यवस्था इतनी कमजोर है कि एक मां अपने बच्चे की परवरिश करने में असमर्थ महसूस करती है? या फिर यह केवल एक ठंडे दिमाग से लिया गया क्रूर निर्णय था? यह घटना हमें न केवल कानूनी कार्रवाई की जरूरत बताती है, बल्कि सामाजिक जागरूकता और समर्थन प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर देती है।