मुहम्मद फैज़ान
8 मार्च 2025 को पूरी दुनिया में महिला दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन हर साल महिलाओं के सम्मान, उनकी उपलब्धियों और समाज में उनके योगदान को याद करने के लिए खास होता है। इस मौके पर हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि मजहब-ए-इस्लाम में महिलाओं को कितना ऊंचा स्थान दिया गया है। इस्लाम एक ऐसा मजहब है जो औरत को सिर्फ एक इंसान ही नहीं, बल्कि समाज का अहम हिस्सा मानता है। चाहे वह मां हो, बहन हो या बेटी, हर रूप में उसकी इज्जत और हक की बात की गई है। आइए, इस खूबसूरत मौके पर इस्लाम में महिलाओं के मर्तबे को करीब से समझते हैं।
इस्लाम में औरत की अहमियत
जमियत उलेमा-ए-हिन्द के मुरादाबाद जिला महासचिव और मस्जिद छीपियान के इमाम मौलाना अब्दुल खालिक ने इस बारे में बहुत ही साफ और सुंदर तरीके से बताया। उनका कहना है कि इस्लाम में औरत का मर्तबा बहुत बड़ा है। अगर वह मां है, तो उसके पैरों के नीचे जन्नत होती है। यह बात इस्लाम की उस सोच को दिखाती है जो मां को सबसे ऊंचा दर्जा देती है। एक मां अपने बच्चों के लिए जो दर्द सहती है, जो प्यार देती है, उसका कोई मोल नहीं हो सकता। मौलाना ने यह भी कहा कि इस्लाम में मां की इज्जत करना हर बच्चे का फर्ज है, और यह इज्जत ही उसे जन्नत की राह दिखाती है।
इस्लाम सिर्फ मां को ही नहीं, बल्कि हर औरत को एक खास नजर से देखता है। यह मजहब बताता है कि औरत समाज की नींव है। उसकी हिफाजत करना, उसका सम्मान करना और उसे उसका हक देना हर किसी की जिम्मेदारी है। मौलाना की बातें सुनकर यह साफ होता है कि इस्लाम औरत को कमजोर नहीं, बल्कि ताकतवर और सम्मानजनक मानता है।
मां के हक की गहराई
मौलाना अब्दुल खालिक ने एक बहुत ही मार्मिक वाकया सुनाया जो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने का है। एक शख्स ने नबी साहब से कहा कि उसने अपनी मां को अपने कंधों पर बैठाकर काबा का तवाफ करवाया और हज के सारे काम पूरे करवाए। उसने पूछा कि क्या उसने अपनी मां का हक अदा कर दिया। इस पर नबी-ए-करीम ने फरमाया कि जब वह पैदा हुआ था, तो उसकी मां ने जो दर्द सहा और जो आह भरी, उसका हक अभी भी पूरा नहीं हुआ है।
यह छोटा सा वाकया हमें बहुत बड़ी सीख देता है। मां का हक इतना बड़ा है कि उसे पूरी जिंदगी मेहनत करने पर भी शायद पूरा न किया जा सके। एक मां अपने बच्चे के लिए जो त्याग करती है, जो प्यार देती है, उसकी कोई कीमत नहीं हो सकती। इस्लाम में मां को यह सम्मान देने की बात इसलिए की गई है ताकि हर इंसान यह समझे कि मां की सेवा और उसकी खुशी ही असली नेकी है।
बहन के प्रति शफकत का इनाम
इस्लाम में औरत अगर बहन के रूप में है, तो उसे प्यार और शफकत की नजर से देखने की सीख दी गई है। मौलाना ने बताया कि बहन के साथ अच्छा बर्ताव करने और उसकी इज्जत करने से इंसान को नेकियां मिलती हैं। यह बात इस्लाम की उस खूबसूरती को दिखाती है जो रिश्तों को मजबूत करने पर जोर देती है। एक बहन अपने भाई के लिए हमेशा दुआ करती है, और भाई का फर्ज है कि वह अपनी बहन की हिफाजत करे और उसे सम्मान दे।
इस्लाम में बहन को सिर्फ एक रिश्तेदार नहीं, बल्कि एक अमानत माना गया है। उसके साथ नरमी से पेश आना और उसकी जरूरतों का ख्याल रखना हर भाई की जिम्मेदारी है। यह छोटी-छोटी बातें ही समाज को प्यार और भाईचारे से भर देती हैं। इस्लाम की नजर में बहन का यह मर्तबा उसे एक खास जगह देता है।
बेटी: जन्नत का रास्ता
अगर औरत बेटी के रूप में है, तो इस्लाम उसे जन्नत का रास्ता बताता है। मौलाना ने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक फरमान का जिक्र किया। नबी साहब ने कहा कि जिसके दो बेटियां हों और वह उनके लिए अच्छे नाम रखे, उन्हें इस्लामी तालीम दे, उनकी परवरिश अच्छे तरीके से करे और फिर नेक लड़के से उनका निकाह कर दे, तो वह शख्स कयामत के दिन नबी साहब के साथ इस तरह खड़ा होगा जैसे दो उंगलियां आपस में मिली होती हैं।
यह बात कितनी खूबसूरत है कि एक बेटी की सही परवरिश इंसान को जन्नत के इतने करीब ले जा सकती है। इस्लाम में बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि रहमत माना गया है। उनकी तालीम, उनकी खुशी और उनकी बेहतरी के लिए मेहनत करना हर मां-बाप का फर्ज है। यह फरमान हमें यह भी सिखाता है कि बेटियों के साथ भेदभाव नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान का बर्ताव करना चाहिए।