अलीगढ़ के खैर कस्बे से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां राष्ट्रीय विद्यालय में पढ़ने वाली 14 वर्षीय कक्षा आठवीं की छात्रा हिमांशी ने कथित तौर पर शिक्षक के लगातार उत्पीड़न से तंग आकर जहरीला पदार्थ खा लिया। इस दुखद घटना ने न केवल स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया है, बल्कि स्कूलों में बच्चों की मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। हिमांशी की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है, और वह जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। यह घटना शिक्षा प्रणाली में बच्चों के प्रति संवेदनशीलता और शिक्षकों की जिम्मेदारी को लेकर एक गंभीर बहस की मांग करती है।
मां का दर्द और शिक्षक पर गंभीर आरोप
हिमांशी की विधवा मां स्नेह कुमारी, जो अपने पति की मृत्यु के बाद अकेले अपने तीन बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं, ने स्कूल के शिक्षक पर अपनी बेटी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का गंभीर आरोप लगाया है। स्नेह कुमारी ने बताया कि उनकी बेटी पिछले एक सप्ताह से शिक्षक के उत्पीड़न का शिकार थी। शिक्षक द्वारा बार-बार अपमान और दबाव डाले जाने की शिकायत हिमांशी ने अपने परिवार से की थी। गुस्से में आकर हिमांशी का भाई गुरुवार को स्कूल पहुंचा और अपनी बहन को घर ले आया। लेकिन घर पहुंचते ही हिमांशी ने यह खौफनाक कदम उठा लिया। स्नेह कुमारी ने आंसुओं भरी आंखों से कहा, “मेरे पति पहले ही हमें छोड़ गए, अब मेरी सबसे छोटी बेटी की जिंदगी खतरे में है। मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी को न्याय मिले और उसकी जान बच जाए।”
अस्पताल में जिंदगी की जंग
घटना के तुरंत बाद हिमांशी को परिजनों ने बिना पुलिस को सूचित किए खैर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में भर्ती कराया। वहां डॉक्टरों ने उसकी नाजुक हालत को देखते हुए उसे तुरंत जिला अस्पताल रेफर कर दिया। जिला मलखान सिंह अस्पताल के आपातकालीन विभाग में तैनात डॉक्टर रितेश ने बताया कि हिमांशी को संदिग्ध जहर खाने के मामले में प्राथमिक उपचार दिया गया, लेकिन उसकी गंभीर हालत को देखते हुए उसे जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, एएमयू रेफर किया गया। वर्तमान में हिमांशी का इलाज वहां गहन चिकित्सा इकाई में चल रहा है, और उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है।
शिक्षा प्रणाली पर उठते सवाल
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे शिक्षा तंत्र की खामियों को भी उजागर करती है। स्कूल, जो बच्चों के लिए एक सुरक्षित और प्रेरणादायक स्थान होना चाहिए, वहां अगर बच्चे मानसिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं, तो यह चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों को बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। साथ ही, स्कूलों में काउंसलिंग और शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।